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|रचनाकार= जावेद अख़्तर|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
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[[Category:गज़लग़ज़ल]]<poem>ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब<brref> नाखुश</ref> सब मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब <br><br>
सब की ख़तिर है ख़ातिर हैं यहाँ सब अजनबी <br>और कहने को हैं घर आबाद सब <br><br>
भूल के भूलके सब रंजिशें सब एक हैं <br>मैं बताऊँ सब को सबको होगा याद सब <br><br>
सब को दावा-ए-वफ़ा सब को सबको यक़ीं <br>इस अदकारी में हैं उस्ताद सब <br><br>
शहर के हाकिम का ये फ़रमान है <br>क़ैद में कहलायेंगे आज़ाद सब <br><br>
चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो <br>उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब <br><br>
तल्ख़ियाँ <ref>कड़वाहटें</ref> कैसे न हो अशार हों अशआर में <br>हम पे जो गुज़री हमें है हम को याद सब<br><br/poem>{{KKMeaning}}