भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार= जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
[[Category:गज़लग़ज़ल]]
<poem>
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता नाता तोड़ लिया एक वो दिन दिन जब पेड़ की शाख़े शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं  एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी -रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब 'आओ खेलें' सारी गलियाँ कहती थीं
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थीं
एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी <ref>चालाकी</ref> की बातें हैं एक वो दिन जब दिल में सारी भोली -भाली बातें रहती थीं एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
एक ये घर जिस घर में मेरा साज़-ओ-सामां सामाँ<ref>तामझाम</ref> रहता है एक वो घर जिसमें जिस घर में मेरी बूढ़ी नानी रहती थीं
</poem>
{{KKMeaning}}
Delete, Mover, Uploader
894
edits