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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
प्रेम-मद-छाके पग परत कहाँ के कहौ
::थाके अंग नैननि सिथिलता सुहाई है ।
कहै रतनाकर यौं आवत चकात ऊधौ
::मानौ सुधियात कोऊ भावना भुलाई है ॥
धारत धरा पै ना उदार अति आदर सौं
::सारत बँहोलिनी जो आँस-अधिकाई है ।
एक कर राजै नवनीत जसुदा को दियौ
::एक कर बंशी वर राधिका पठाई है ॥107॥
</poem>
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