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Kavita Kosh से
जो सुख मे सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥ 1 ॥ <BR/><BR/>
तिनका कबहुँ ना न निंदिये, जो पाँव तले होय । <BR/>
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ 2 ॥ <BR/><BR/>