भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
चीख़ता है जैसे सुरंग में घुसती हुई हवा
अंगों को बेचैनी में मरोड़ता
साँप की तरह हाफता हाँफता है
फन पटकता है