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Kavita Kosh से
तूफानों की चीत्कार में
गर्भपात के भय से
रोशनियों के नक्शे नक्श पथरा गए हैं
कुछ-हो-जाने-की-दहशत नेवहशत की चड़ेल चुड़ेल को जन्म दे दिया है
जंगल की वीरान आवाज़ों में
पेड़ों की परछाईयों पर