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Kavita Kosh से
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जब से सँभाला होश मेरी काव्य चेतना ने
आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद
सुख में तो सभी मीत होते किन्तु दुख में भी
जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा
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