भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
स्निग्ध सुधि जिन की लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू !<br>
परिधि बन घेरे तुझे वे उँगलियाँ अवदात !<br>
झर गए खद्योग सारे;<br>
तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे,<br>