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स्निग्ध सुधि जिन की लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू !<br>
परिधि बन घेरे तुझे वे उँगलियाँ अवदात !<br>
 
झर गए खद्योग सारे;<br>
तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे,<br>