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जब नींद में डूब चुकी है धरती<br />
और केवल बबूल के फूलों की<br />
महक जाग रही है<br />
तब दूधिया चॉंदनी में<br />
धान से लदी वह लौट रही है<br />
<br />
लौट रहे हैं अन्‍न<br />
बचपन बीत जाने के बाद<br />
बचपन को याद करते<br />
<br />
घंटियों की टुनुन-टुनुन<br />
गॉंव की नींद तक पहुंच रही है<br />
और सारा गॉंव<br />
अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है<br />
<br />
हिल रही हैं<br />
अलगनी में टॅंगी हुई कन्‍दीलें<br />
और चमक रहा है गॉंव का कन्‍धा<br />
<br />
एक मॉं के कण्‍ठ से उठ रही है लोरी<br />
कि चॉंदी के कटोरे में भरा है दूध<br />
और घुल रहा है बताशा<br />
<br />
बैलगाड़ी पहुंच जाना चाहती है गॉंव<br />
दूध में बताशे के घुलने से पहले.<br />
<br />
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