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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>घर-घर<br />मॉंगती माँगती हैं फूल<br />सॉंझ साँझ गहराने से पहले<br />कार्तिक-स्‍नान करने वाली लड़कियॉं<br />......<br />फूल अगर केसरिया हो<br />खिल उठती हैं लड़कियॉं<br />लड़किययाँएक केसरिया फूल से कार्तिक में<br />मिलता है एक मासे सोने का पुण्‍य<br />कहती हैं लड़कियॉं<br />लड़कियाँ<br />एक-एक फूल के लिए<br />दौड़ती हैं , झपटती हैं<br />लड़ती हैं लड़कियॉं<br />लड़कियाँऔर कॉंटों के चुभने की<br />परवाह नहीं करतीं<br /><br />लौटती हुई लड़कियॉं लड़कियाँ गिनती हैं<br />अपने-अपने हिस्‍से के फूल <br />और हिसाबती हैं<br />कि कल उन्‍हें मिल जायेगा<br />जाएगाकितने मासे सोने का पुण्‍य?<br /><br />कितनी भोली हैं<br />मेरे गॉंव की लड़कियॉं<br />लड़कियाँजो अलस्‍सुबह उठती हैं<br />और रात के दुर्गम जंगल को पहली बार<br />अपनी हॅंसी हँसी के फूलों से भर देती हैं<br /><br />तालाब के गुनगुने जल में<br />नहाती हुई लड़कियॉं लड़कियाँ हॅंसती हैं<br />छेड़ती हैं एक-दूसरे को<br />मारती हैं छींटे<br />और लेती हैं सबके मन की थाह<br /><br />इतना-इतना सोना चढ़ाकर मुंह अंधेरे<br />मुँह अँधेरेअपने भोले बाबा से<br />क्‍या मॉंगती माँगती हैं?<br /><br /poem>
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