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|संग्रह= एक झील थी बर्फ़ की / लाल्टू
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'''1.'''<br>
पहाड़ को कठोर मत समझो<br>पहाड़ को नोचने पर<br>पहाड़ के आँसू बह आते हैं<br>सड़कें करवट बदल<br>चलते-चलते रुक जाती हैं<br><br>
पहाड़ को<br>दूर से देखते हो तो<br>पहाड़ ऊँचा दिखता है<br><br>
करीब आओ<br>पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा<br>पहाड़ के ज़ख्मी सीने में<br>रिसते धब्बे देख<br>चीखो मत<br><br>
पहाड़ को नंगा करते वक्त<br>वक़्ततुमने सोचा न था<br>पहाड़ के जिस्म में भी<br>छिपे रहस्य हैं।<br><br>
'''2.''' <br>
इसलिए अब<br>अकेली चट्टान को<br>पहाड़ मत समझो<br><br>
पहाड़ तो पूरी भीड़ है<br>उसकी धड़कनें<br>अलग-अलग गति से<br>बढ़ती-घटती रहती हैं<br><br>
अकेले पहाड़ का ज़माना<br>बीत गया<br>अब हर ओर<br>पहाड़ ही पहाड़ हैं।<br><br>
'''3.'''<br>
पहाड़ों पर रहने वाले लोग<br>पहाड़ों को पसंद नहीं करते<br>पहाड़ों के साथ<br>हँस लेते हैं<br>रो लेते हैं<br>सोचते हैं<br>पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई<br>बाकी भी गुज़र जाएगी।<br><br>
(रचनाकाल : 1988)
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