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वसन्त / एकांत श्रीवास्तव

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नया पृष्ठ: वसन्‍त आ रहा है <br /> जैसे मॉं की सूखी छातियों में<br /> आ रहा हो दूध<br /> <br />…
वसन्‍त आ रहा है <br />
जैसे मॉं की सूखी छातियों में<br />
आ रहा हो दूध<br />
<br />
माघ की एक उदास दोपहरी मे<br />
गेंदे के फूल की हॅंसी-सा<br />
वसन्‍त आ रहा है<br />
<br />
वसन्‍त का आना<br />
तुम्‍हारी ऑंखों में<br />
धान की सुनहली उजास का<br />
फैल जाना है<br />
<br />
कॉंस के फूलों से भरे<br />
हमारे सपनों के जंगल में<br />
रंगीन चिडियों का लौट जाना है<br />
वसन्‍त का आना<br />
<br />
वसन्‍त हॅंसेगा<br />
गॉंव की हर खपरैल पर<br />
लौकियों से लदी बेल की तरह<br />
और गोबर से लीपे<br />
हमारे घरों की महक बनकर उठेगा<br />
<br />
वसन्‍त यानी बरसों बाद मिले<br />
एक प्‍यारे दोस्‍त की धौल<br />
हमारी पीठ पर<br />
<br />
वसन्‍त यानी एक अदद दाना<br />
हर पक्षी की चोंच में दबा<br />
वे इसे ले जायेंगे<br />
हमसे भी बहुत पहले<br />
दुनिया के दूसरे कोने तक.<br />
<br />
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