भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: अन्न<br /> धरती की ऊष्मा में पकते हैं<br /> और कटने से बहुत पहले<br /> पहुं…
अन्न<br />
धरती की ऊष्मा में पकते हैं<br />
और कटने से बहुत पहले<br />
पहुंच जाते हैं चुपके से<br />
किसान की नींद में<br />
कि देखो हम आ गये<br />
तुम्हारी तिथि और स्वागत की<br />
तैयारियों को गलत साबित करते <br />
<br />
अन्न<br />
अपने सपनों में<br />
कोई जगह नहीं देते<br />
गोदामों और मंडियों को<br />
<br />
अन्न धुलेंगे<br />
किसान की बिटिया के हाथों<br />
पकेंगे बटुली के खौलते जल में<br />
और एक भूखे गॉंव की खुशी में<br />
बदल जायेंगे<br />
<br />
अन्न<br />
पक्षियों की चोंच में बैठकर<br />
करेंगे अपनी याञा<br />
<br />
माढ़ बनकर<br />
गाय का कंठ करेंगे तर<br />
और अगली सुबह<br />
उसके थन में<br />
दूध बनकर मुस्कुरायेंगे<br />
<br />
अन्न<br />
हमेशा-हमेशा रहेंगे<br />
प्रलय से पहले<br />
प्रलय के बाद<br />
<br />
हमेशा-हमेशा<br />
अपने दूधियापन से<br />
जगर-मगर करते गॉंव का मन.<br />
<br />
धरती की ऊष्मा में पकते हैं<br />
और कटने से बहुत पहले<br />
पहुंच जाते हैं चुपके से<br />
किसान की नींद में<br />
कि देखो हम आ गये<br />
तुम्हारी तिथि और स्वागत की<br />
तैयारियों को गलत साबित करते <br />
<br />
अन्न<br />
अपने सपनों में<br />
कोई जगह नहीं देते<br />
गोदामों और मंडियों को<br />
<br />
अन्न धुलेंगे<br />
किसान की बिटिया के हाथों<br />
पकेंगे बटुली के खौलते जल में<br />
और एक भूखे गॉंव की खुशी में<br />
बदल जायेंगे<br />
<br />
अन्न<br />
पक्षियों की चोंच में बैठकर<br />
करेंगे अपनी याञा<br />
<br />
माढ़ बनकर<br />
गाय का कंठ करेंगे तर<br />
और अगली सुबह<br />
उसके थन में<br />
दूध बनकर मुस्कुरायेंगे<br />
<br />
अन्न<br />
हमेशा-हमेशा रहेंगे<br />
प्रलय से पहले<br />
प्रलय के बाद<br />
<br />
हमेशा-हमेशा<br />
अपने दूधियापन से<br />
जगर-मगर करते गॉंव का मन.<br />
<br />