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मेले में / एकांत श्रीवास्तव

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नया पृष्ठ: मेले में<br /> एकाएक उठती है रूलाई की इच्‍छा<br /> जब भीड़ एक दुकान से दू…
मेले में<br />
एकाएक उठती है रूलाई की इच्‍छा<br />
जब भीड़ एक दुकान से दूसरी दुकान<br />
एक चीज से दूसरी चीज<br />
और एक सर्कस से दूसरे तमाशे पर<br />
टूट रही होती है<br />
<br />
एक धूल की दीवार के उस पार<br />
साफ-साफ दिखता है<br />
पन्‍द्रह बरस पहले का घर और मॉं<br />
<br />
आज भी रखी है पन्‍द्रह बरस बाद<br />
गुड़ और रोटी के साथ सहेजी हुई<br />
मॉं की आवाज जो भीड़ में<br />
उंगली पकड़कर चलने को कहती है<br />
<br />
न मैं भटका न खोया<br />
<br />
अगर कुछ खोया तो बस एक घर<br />
इस मेले में<br />
जिसे मैं आज तक ढूंढ नहीं पाया.<br />
<br />
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