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रचनाकार: [[रामधारी सिंह "दिनकर"]][[Category:कविताएँ]][[Category:रामधारी सिंह "दिनकर"]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ कहता हूं¸ हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो।
श्रवण खोलो¸
और तुम नींद करो¸
अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूंगा।दूँगा।
तुम बुरा कहो या भला¸
मुझे परवाह नहीं¸
पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूंगा।।दूँगा।।
गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸
झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूं।हूँ।
है जहां–जहां तमतोम
चुनचुन कर उन कुंजों में
आग लगाता हूं।हूँ।
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