भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
फैली खेतों में दूर तलक
:मख़मल की कोमल हरियाली, लिपटीं जिस से जिससे रवि की किरणें :चाँदी की-सी उजली जाली ! तिनकों के हरे हरे तन पर:हिल हरित रुधिर है रहा झलक,श्यामल भू तल पर झुका हुआ:नभ का चिर निर्मल नील फलक।
अरहर सनई की सोने की
:किंकिणियाँ हैं शोभाशाली शोभाशाली।उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध ,:फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
:नीलम की कलि, तीसी नीली, नीली। रँग-रँग के फूलों में रिलमिल :हँस रही संखिया मटर खड़ी, खड़ी।मख़मली पेटियों-सी लटकी लटकीं :छीमियाँ, छिपाये छिपाए बीज लड़ी ! लड़ी।फिरती हैं रँग रँग की तितली:रंग रंग के फूलों पर सुन्दर,फूले फिरते हों फूल स्वयं:उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर।
अब रजत-स्वर्ण मंजरियों से
:लद गयी गईं आम्र-तरु की डाली, डाली।
झर रहे ढाँक, पीपल के दल,
:हो उठी कोकिला मतवाली ! मतवाली।
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
:जंगल में झरबेरी झूली, झूली।
फूले आड़ू, नीबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैगनबैंगन, मूली ! मूली।
पीले मीठे अमरूदों में
:अब लाल-लाल चित्तियाँ पड़ीं ,
पक गये सुनहले मधुर बेर,
:अँवली से तरु की डाल जड़ीं ! जड़ीं।लहलह पालक,महमह धनिया, :लौकी औ' सेम फली,फैलीं ! ,
मख़मली टमाटर हुए लाल,
:मिरचों की बड़ी हरी थैली ! थैली।
गंजी को मार गया पाला,
:अरहर के फूलों को झुलसा, हाँका करती दिन-भर बन्दर :अब मालिन की लड़की तुलसा ! तुलसा।
बालाएँ गजरा काट-काट,
:कुछ कह गुपचुप हँसतीं किन-किन , चाँदी की-सी घण्टियाँ घंटियाँ तरल :बजती रहती रहतीं रह-रह खिन-खिन! खिन।
बगिया के छोटे पेड़ों पर