{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>फिर आ गये गए है फूल सूरजमुखी के<br />भोर के गुलाबी आईने में झांकते<br />झाँकतेचीन्हते<br />जानी-पहचानी धरती<br /><br />जैसे द्वार पर पहुंचे पहुँचे हुए पाहुन<br />वे आ गये हैं<br />इस बार भी<br />अपने समय पर<br /><br />जब सिर्फ सूचनाएं सूचनाएँ आ रही हैं हत्या की<br />बाढ़, अकाल और<br />महामारी में मरने वाले लोगों की<br />देखते-देखते एक बसे बसाये बसाए शहर के<br />धुएं धुएँ और राख में बदलने की<br /><br />ऐसे दुर्गम समय में<br />आ गये गए हैं<br />फूल सूरजमुखी के.<br />के।<br /poem>