भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ पृथ्वी-1 / एकांत श्रीवास्तव

79 bytes added, 19:39, 30 अप्रैल 2010
हमारी आंखों में<br {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द /एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>हमारी आँखों मेंकसमसा रहा है जल<br />ओ पृथ्‍वी<br />अभी रहेगा तेरा हरापन<br /><br />तेरी कोख में सोया हुआ बीज<br />पौधा भी बनेगा, पेड़ भी<br /><br />आंसुओं आँसुओं में नमक की तरह<br />घुल गया है गुस्‍सा<br />ओ पृथ्‍वी<br />अभी रहेगी तेरी ऊष्‍मा<br />पककर तैयार होंगे जिसमें<br />कुम्‍हार के घड़ों की तरह<br />हमारे सपने<br /><br />धीरे-धीरे सही<br />टूट रहा है सन्‍नाटा<br />उठ रही है हमारी बांसुरी बाँसुरी से एक धुन<br />हमारी थकान में फैल रहा है<br />भीगे पत्‍तों का ताजापन<br />ताज़ापन<br />ओ पृथ्‍वी<br />!अभी रहेगा तेरा संगीत<br />जिसे गाते-गाते लड़ेंगे हम<br />तेरी ऊष्‍मा<br />हरापन<br />हरेपनऔर संगीत के लिए.<br />लिए।<br /poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits