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<Poem>
जब भी लड़खड़ाता हूंहूँ
गिरने से पहले
मुझे थाम लेते हैं मेरे शब्‍द
पड़ोसियों की तरह-'आपकी चिट्ठी'
मेरे शब्‍दों को ढूंढते ढूँढते हैं आतताई
कि इनमें छिपी हैं उनकी साजिशें
जन्‍म लेना चाहते हैं बार-बार
संसार को बचाये रखने की
पहली और आखिरी इच्‍छा बनकर.|</poem>
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