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Kavita Kosh से
देखती है
और धरती पर मारती है
लार और हॅंसी हँसी से सना
उसका चेहरा
अभी इतना मुलायम है
अभी सारे मकान
हवा में हिलते हैं।
आकाश अभी विरल है दूर
धीरे-धीरे हिलाती हवा
फूलों का तमाशा है
वे हॅंसते हँसते हुए
इशारे करते हैं:
दूर-दूरान्तरों से
उत्सुक काफिलेकाफ़िले
धूप में चमकते हुए आएँगे।
जन्म चाहिए
हर चीज चीज़ को एक और
जन्म चाहिए।
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