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[[Category:गज़ल]]
उस पर जाने किस किसका तो बंधन होता है<poem>
उस पर जाने किस किसका तो बंधन होता है
अपना मन भी आखिर कब अपना मन होता है ।
 
 
तन से मन की सीमा का अनुमान नहीं लगता
 
तन के भीतर ही मीलों लम्बा मन होता है ।
 
 
वह भी क्या जानेगा सागर की गहराई को
 
जिसका उथले तट पर ही देशाटन होता है ।
 
 
अँधियारा क्या घात लगाएगा उस देहरी पर
 
जिस घर रोज उजालों का अभिनन्दन होता है ।
 
 
दुख की भाप उठा करती हैसुख के सागर से
 
ऐसा ही, ऐसा ही शायद जीवन होता है ।
 
 
हम-तुम सारे ही जिसमें किरदार निभाते हैं
 
पल-पल छिन-छिन उस नाटक का मंचन होता है ।
 
 
तन की आँखें तो मूरत में पत्थर देखेंगी
 
मन की आँखों से ईश्वर का दर्शन होता है ।
 
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