भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
कुल वधुओं सी अयि सलज्ज, सुकुमार!
:सौरभ अतिशय
:पुलकित कर देती मन!
 
:उन्नत वर्ग वृंत पर निर्भर,
:तुम संस्कृत हो, सहज सुघर,
:करती हो गोपन कूजन!
:जग से चिर अज्ञात,
:तुम्हें बाँधे निकुंज गृह द्वार!
कुल वधुओं सी अयि सलज्ज, सुकुमार!
कुल वधुओं सी अयि सलज्ज, सुकुमार!
:हाय, नहीं करुणा ममता है मन में कही तुम्हारे!
:तुम्हें बुलाते
:रोते गाते
:शोभा ही के मारे!
:केवल हास विलास मयी तुम!
:केवल मनोभिलाष मयी तुम!:विभव भोग उल्लास मयी तुम!
:तुमको अपनाने के सारे
:व्यर्थ प्रयत्न हमारे!
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits