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Kavita Kosh से
सर्प डगर पर!
खिसकाती-लट, -
शरमाती झट
अबला चंचल
ज्यों फूट पड़ा हो स्रोत सरल
भर फेनो्ज्वल फेनोज्वल दशनों से अधरों के तट!
वह मग में रुक,