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|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल'
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छीनकर हमसे सभी एतबार मज़हब ने
इस तरह बाँटा हमें इस बार मज़हब ने
चन्द दीवारें गिराकर हर किसी दिन में
फिर खड़ी कर दी नई दीवार मज़हब ने
आँख से गुज़रे वही हिटलर, वही नादिर
फिर किया इतिहास को साकार मज़हब ने
ईद-दीवाली कि होली की खुशी ही हो
हर खुशी पर कर लिया अधिकार मज़हब ने
कर दिया हालात को अख़बार मज़हब ने
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