भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
उसने विस्‍मय से मुझे देखा
बहुत विस्‍मय उसका सम्‍मोहित करता है
उसकी आवाज आवाज़ में शब्‍द नहीं हैंवह आवाज आवाज़ धरती जितनी पुरानी लगती है
उसने अपनी मुट्ठी में मेरे बाल भरे
उन्‍हें खूब ख़ूब खींचा
कहीं भी नाखून मारे
हाथ पांव -पाँव फेंके किलकारियां किलकारियाँ भरीं
और रोया
उसके रोने में उकसी मां माँ की आहट है.है।
उसने अपनी मां माँ की गोद में पहुंचकरपहुँचकर
मुझे देखा
वह देखना वह क्‍या था
कि शब्‍द नहीं देते साथ
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,443
edits