भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
<Poem>
दूध का ढक्‍कन हटने की आवाज आवाज़ नहीं होने देतींकभी लगता है किसी और आवाज आवाज़ की ओट में
ढक्‍कन हटाती हैं चतुर! कभी ऐसे कि पूरा घर
जाग जाए उन्‍हें भागना पड़ता है! कभी कोने में
फंस फँस जाती हैं तो उनकी आंखों आँखों में देखने से ऐसे मेंडर लगता है उन्‍हें जल्‍दी से निकल जाने दिया जाता है.है।
उनके घर नहीं होते वे किसी इलाके के तमाम घरों में
रहती हैं वे बहुत कम मारी जाती हैं जबकि कुत्‍ते बहुत
मरते हैं वे लावारिस पड़ी नहीं मिलती. मिलती। उनमें हमलाकरने और बचने की तैयारी दिखती है. है। वे जब रोती हैंतो घरों में स्‍यापा छा जाता है. है। कईं बार देर तक रोती हैंकईं बार उकनी आवाज उनकी आवाज़ बहुत पास से आती है.है।
वे पली हुई कुछ कम बिल्‍ली-सी दिखती हैं
उनका हमारा साथ कितना पुराना है. है। पर वे रास्‍ता
काटना नहीं छोड़ती!
कभी लगता है वे कम हो रही हैं
तभी कोई खिड़की से झांकती झाँकती है कोई पूंछ पूँछ उठाकरम्‍याऊं म्‍याऊँ करती है
कोई रास्‍ता काटती निकल जाती है
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits