भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मम समक्षे स्थिता श्रोणि वक्षोन्नता<br>
अप्रयासांग स्पर्शनं कामये।<br>
सैव दृष्टा मया अद्य नद्यास्तटे<br>
सा जलान्निर्गता भाति क्लेदित पटे<br>