भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
{{KKCatKavita}}
<poem>
तप रे मधुर-मधुर मन ! :विश्व -वेदना में तप प्रतिपल, :जग-जीवन की ज्वाला में गल, :बन अकलुष, उज्जवल उज्ज्वल औ’ कोमल ,::तप रे विधुर-विधुर मन !
अपने सजल-स्वर्ण से पावन
रच जीवन की मूर्ति पूर्णतम,
स्थापित कर जग में अपनापन; , :ढल रे ढल आतुर -मन !
:तेरी मधुर -मुक्ति ही बंधन , :गंध-हीन तू गंध-युक्त बन , :निज अरूप में भर-स्वरूप, मन, ::मूर्तिमान बन, निर्धन ! ::गल रे गल निष्ठुर -मन !
(जनवरी, 1932)रचनाकाल: जनवरी’ १९३२
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,333
edits