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क्या मेरी आत्मा का चिर धन / सुमित्रानंदन पंत
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08:50, 10 मई 2010
:लगता अपूर्ण मानव-जीवन,
:मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन।
::जग-जीवन में उल्लास मुझे,
::नव-आशा, नव-अभिलाष मुझे,
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