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{{KKRachna
|रचनाकार=मंगलेश डबराल
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
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एक गहन आत्मविश्वास से भरकर
सुबह निकल पड़ता हूँ घर से
ताकि सारा दिन आश्वस्त रह सकूँ
एक आदमी से मिलते हुए मुस्कराता हूँ
वह एकाएक देख लेता है मेरी उदासी
एक से तपाक से हाथ मिलाता हूँ
वह जान जाता है मैं भीतर से हूँ अशांत
एक दोस्त के सामने ख़ामोश बैठ जाता हूँ
वह कहता है तुम दुबले बीमार क्यों दिखते हो
जिन्होंने मुझे कभी घर में नहीं देखा
वे कहते हैं अरे आप टीवी टी०वी० पर दिखे थे एक दिन
बाज़ारों में घूमता हूँ निश्शब्द
डिब्बों में बन्द हो रहा है पूरा देश
पूरा जीवन बिक्री के लिए
एक नई रंगीन किताब है जो मेरी कविता के
विरोध में आई है
जिसमें छपे सुन्दर चेहरों को कोई कष्ट नहीं
जगह जगह नृत्य की मुद्राएँ हैं विचार के बदले
जनाब एक पूरी फ़िल्म है लम्बी
आप ख़रीद लें और भरपूर आनन्द उठाएँ
शेष जो कुछ है अभिनय है
चारों ओर आवाज़ें आ रही हैं
मेकअप बदलने का भी समय नहीं है
हत्यारा एक मासूम के कपड़े पहनकर चला आया है
वह जिसे अपने पर गर्व था
एक ख़ुशामदी की आवाज़ में गिड़गिड़ा रहा है
ट्रेजडी है संक्षिप्त लम्बा प्रहसन
हरेक चाहता है किस तरह झपट लूँ
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार ।