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दोहे / बनज कुमार ‘बनज’

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शायद तुमने बाँध लिया है ख़ुद को छायाओं के भय से,
इस स्याही पीते जंगल में कोई चिन्गारी तो उछले ।
 
रहे शारदा शीश पर, दे मुझको वरदान।
गीत, गजल, दोहे लिखूँ, मधुर सुनाऊँ गान।
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