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वन्दना / बेढब बनारसी

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<poem>1. वन्दना
शारदे आज यह वर दे
तुझसी ही हे देवि अमर हो
इस निब-वालीको मैं जैसा चाहूँ -- वैसा कर दे
 
इसमें रंग भरा हो काला
किन्तु जगत में करे उजाला
वहाँ गिरे यह बनकर पाला
फाड़े यह पाखण्ड -- दंभके ताने हुए जो परदे
 
जैसी टेढ़ी अलकें काली
मानों ऐंठी कोई ब्याली
हो यह टेढ़े शब्दों वाली
किन्तु नहीं हो विष की प्याली
इससे सुधा-बूँद बरसा अधरों पर सबके धर दे
भरा रहे रत्नाकर इसमें
रसका भर दे सागर इसमें
मस्ती के हो आखर इसमें
जग को करदे मादक, इसमें वह मादकता भर दे
 
चूमे क्षितिज और अंबरको
नक्षत्रों के लोक प्रवरको
छूले मानव के अन्तर को
उड़े कल्पना के समीर पर इसको ऐसा करदे
 
मूर्ख मनुज की वाह-वाह से
बिना ह्रदयवाली निगाह से
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