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'''मत बाँधो'''
सौरभ उड उड़ जाता है नभ में
फिर वह लौ लौट कहाँ आता है?
ःःः बीज धूलि में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड उड़ पाता है?
अग्नि सदा धरती पर जलती
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रंग रँग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो?!
इन सपनों के पोख पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो।बाँधो!
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