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सो गई है मनुजता की संवेदना / जगदीश व्योम
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03:13, 14 मई 2010
काव्य की कुलवधू हाशिए पर खड़ी
ओढ़कर त्रासदी का मलिन आवरण
चन्द सिक्कों में बिकती रही ज़िंदगी
और नीलाम होते रहे आचरण
लेखनी छुप के आंसू बहाती रही
उनको रखने को गंगाजली चाहिए।
डा० जगदीश व्योम
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