गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
सो गई है मनुजता की संवेदना / जगदीश व्योम
87 bytes removed
,
03:17, 14 मई 2010
राजमहलों की कालीनों में खो गया
कितनी रंभाओं का वह कुंआरा रुदन
कितनी रंभाओं का है कुंआरा स्र्दन
देह की हाट में भूख की त्रासदी
और भी कुछ है तो उम्र भर की घुटन
डा० जगदीश व्योम
929
edits