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लेखिका: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=महादेवी वर्मा]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=प्रथम आयाम / महादेवी वर्मा]]}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*होती है न प्राण की प्रतिष्ठा न वेदी पर<br>देवता का विग्रह जबखण्डित हो जाता है।<br><br>
होती वृन्त से झड़कर जो फूल सूख जाता है न प्राण की प्रतिष्ठा ,<br>न वेदी परउसको कब माली माला में गूँथ पाता है?<br><br>
देवता का विग्रह जबलेकर बुझा दीप कौन भक्त ऐसा है<br>खण्डित हो जाता है।कौन उससे पूजा की आरती सजाता है?<br><br>
मानव की अपनी उद्देश्यहीन यात्रा पर<br>
टूटे सपनों का भार ढोता थक जाता है।<br><br>
वृन्त से झड़कर जोफूल सूख जाता मोती रचती हैसीप मूँगे हैं,माणिक हैं<br>वैभव तुम्हारा रत्नाकर कहलाता है।<br><br>
उसको कब मालीमाला में गूँथ पाता दिनकर किरणों से अभिनन्दन करता है?नित्य<br>चन्द्रमा भी चाँदनी से चन्दन लगाता है।<br><br>
निर्झर नद-नदियों का स्नेह तरल मीठा जल<br>
तुझको समर्पित हो तुझ में मिल जाता है।<br><br>
लेकर बुझा दीपकौन भक्त ऐसा है कौन उससे पूजा कीआरती सजाता है? मानव की अपनी उद्देश्यहीन यात्रा पर टूटे सपनों का भारढोता थक जाता है। मोती रचती है सीपमूँगे हैं, माणिक हैं वैभव तुम्हारा रत्नाकरकहलाता है। दिनकर किरणों सेअभिनन्दन करता है नित्य चन्द्रमा भी चाँदनी सेचन्दन लगाता है। निर्झर नद-नदियों कास्नेह तरल मीठा जल तुझको समर्पित होतुझ में मिल जाता है। कौन सी कृपणता हैखारे क्यों रहे सिंधु!<br>याचक क्यों एक घूँटतुझसे न पाता है? ''प्रथम आयाम नामक संकलन से''<br><br>