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उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे
हरेक सिम्त<ref>दिशा</ref> समेत समेट दी कि हो जाऊँ कामराँ<ref>सफल</ref>
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे
मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ<ref>जुलूस</ref> के थे
जब तक वो न थी करीब,तो सब थे रकीब
हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ<ref>डूबता सूरज</ref> के थे
आज तो दे रखीं हैं सौ दुकाने दुकानें किराए परकल तक खरीदार ख़रीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे
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