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|संग्रह=
}}
{{KKProofReadingRequired}}'''1 
जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान,
 
रामादि राजा अति कीर्तिमान।
 
जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि ।।
वही हमारी यह आर्य्य- भूमि ।। '''2
जहाँ हुए साधु हा महान्
 
थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्।
 
जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
 '''3
जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी,
 
स्वदेश का भी अभिमान भारी ।
 
जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
'''4
हुए प्रजापाल नरेश नाना,
 
प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना ।
 
जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि ,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
'''5
वीरांगना भारत-भामिली थीं,
 
वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं ।
 
जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
 '''6
स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष,
 
हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष ।
 
जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
'''7
स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान,
 
जहाँ हुए यत्न सदा महान।
 
जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
'''न स्वार्थ का लेण जरा कहीं था,
न स्वार्थ का लेन जरा कहीं था,
देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था।
 
जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
'''9
कोई कभी धीर न छोड़ता था,
 
न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था।
 
जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
 '''10
स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने,
 
जहाँ सभी ने शर-चाप ताने ।
 
जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
'''11
अनेक थे वर्ण तथापि सारे
 
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे
 
जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि,
 
वही हमारी यह आर्य भूमि ।।
'''12
थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी,
 जहां जहाँ हुए शुर यशोधिकारी । 
जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
'''13
दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान,
 
छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान ।
 
जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि,
 
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
'''14 नये नये देश जहाँ अनेक,  जीत गये थे नित एक एक ।
नए नए देश जहाँ अनेक,
जीत गए थे नित एक एक ।
जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि,
 
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
'''15
विचार ऐसे जब चित्त आते,
 
विषाद पैदा करते, सताते ।
 
न क्या कभी देव दया करेंगे ?
 
न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ?
('''’सरस्वती’ के अप्रैल, 1906 की सरस्वती के अंक में प्रकाशित )
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