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ये दो फूल जिनमें खो जाते हैं हम अक्सर हमें इस कदर लुभाते हैं कि हम भूल जाते हैं,धूप की नई रंगत ने इन्हें मिल जाना मज़बूर कर दिया है मिट्टी में ही अब ये खिलेंगे मगर सोचने पर उपवन में ही कि फ़िजा बदलने लगी है हम कितना भी कर लें जतन अब बदलना चाहिए हमें समर्पित कर दें अपना जीवन भी तौर-तरीका तनखान-मनपान रहन-धन सहन और गृह वन सिर्फ़ इनकी एक मुस्कान के लिए किन्तु परन्तु व्यर्थ है सारी लगन सूना ही लगता है अपना आँगन आदतें और रवायतें भी तरसते हैं हमारे कर्ण वक़्त इनकी खिलखिलाहट के लिएआ गया है।
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