भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> शुभ्र कुसुम में हो सुग…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शुभ्र कुसुम में हो सुगंध
या शीतल मलयज मंद मंद
बन मेघों का मल्हार राग
या फिर अवनी के मधुर छंद
प्राणों में आकर बस जाना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
कर देना मुखरित अंग अंग
आलिंगन में रत संग संग
कुछ रास अनोखी नए ढंग
खुलती सांसों की राह तंग
उर कह दे जीवन पहचाना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
ले हिम बिंदु से धवल रूप
और तीक्ष्ण समय की सौम्य धूप
आच्छादित कर निज अंध कूप
मन दीन दयामय बने भूप
स्निग्ध चांदनी बन आना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
तत्पर हो तकना राह राह
भावों का ऐसा है प्रवाह
उद्दगम की कैसे मिले थाह
क्यों जगती है उन्मुक्त चाह
समझोगे तो समझा जाना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
</pom>
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शुभ्र कुसुम में हो सुगंध
या शीतल मलयज मंद मंद
बन मेघों का मल्हार राग
या फिर अवनी के मधुर छंद
प्राणों में आकर बस जाना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
कर देना मुखरित अंग अंग
आलिंगन में रत संग संग
कुछ रास अनोखी नए ढंग
खुलती सांसों की राह तंग
उर कह दे जीवन पहचाना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
ले हिम बिंदु से धवल रूप
और तीक्ष्ण समय की सौम्य धूप
आच्छादित कर निज अंध कूप
मन दीन दयामय बने भूप
स्निग्ध चांदनी बन आना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
तत्पर हो तकना राह राह
भावों का ऐसा है प्रवाह
उद्दगम की कैसे मिले थाह
क्यों जगती है उन्मुक्त चाह
समझोगे तो समझा जाना
एक प्रेम सुधा बरसा जाना
</pom>