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ओम् शन्नो देवी रभि-----------------------------स्रवन्तु नः.
इस पूर्वोक्त मन्त्र से तीन बार आचमन करें.
मनसा परिक्रमा मन्त्र
ओम् प्ाची दिग्निरधिपति रसितो-------------------ॐ प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः अथर्ववेद ३/२७/१
पूर्व दिशा का ईशानं यह अग्नि देव है,
रक्षक है आदित्य, न तुलना, एकमेव है.
तेरे विधान के न्याय-नियम, सब द्वेष शेष हों.
ओम् दक्षिणा दिगिन्द्रो -------------------------दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षितापितर इषवः . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नमइषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तंवो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/२
दिशि दक्षिण का ईशानं, अनुपम इन्द्र देव है,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
ओम् प्रतीची दिग् -------------------------दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकूरक्षितान्नमिषवः . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नमइषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तंवो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/३
दिशि पश्चिम के ईशानं, अनुपम वरुण देव हैं,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
ओम् उदीची -------------------------------------दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताऽशनिरिषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/४
दिशि उत्तर के ईशानं अनुपम सोम देव हैं,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों द्वेष शेष हों.
ओम् ध्रुवा दिग् ----------------------------दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षितावीरुध इषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/५
दिशि ध्रुव के ईशानं अनुपम य़े विष्णु देव हैं,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
ओम ऊर्ध्वा दिग्---------------------------दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षितावर्षमिषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३ /२७/ ६
उपस्थान मंत्र ______________________
ओम् उद्वंतमसस्परी -----------------------जयोतिरुत्तममॐ उद्वयन्तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम् . देवंदेवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् .
यजुर्वेद ३५/१४
अति परे प्रकृति से अन्धकार से दूर अति है,
तेरे प्रकाश की तेज महत, अति अनुपम गति है.
ओम् उदुत्यम ----------------------------------------ॐ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः . दृशेविश्वाय सूर्यमसूर्यम्.
यजुर्वेद ३३/३१
इस विश्व में ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी, ज्ञान विवेक hai
सूर्य रचनाकार की, आनंदकंद निकंद की.
ओम् चित्रं देवानांमुदगादनीकम-------------------------------देवानामुद्गादनीकं चक्षुर्मित्रस्यवरुणस्याग्नेः . आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष~म् सूर्य आत्माजगतस्तस्थुषश्च स्वाहा.
यजुर्वेद ७/४२
विश्वानि देवों में तू ही, अतिशय बली महिमा मयी.
सर्व व्यापक अणु-अणु, द्यौ में धरनि आकाश में.
ओम् तच्च----------------------------------------------ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् . पश्येमशरदः शतातशतं जीवेम शरदः शत~म् शृणुयाम शरदःशतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतंभूयश्च शरदः शतात् .
यजुर्वेद ३६/१४
हे सर्व दृष्टा, सृष्टि के तू , आदि अंत व् मध्य में.
गायत्री मंत्र ________________________
ओम् भूर्भुवः स्वः .---------------------------------------प्रचोदयाततत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यधीमहि . धियो यो नः प्रचोदयात् .
यजुर्वेद, ३६/३, ऋग्वेद, ३/६२/१०
हे सुख स्वरूपी, तुम जगत उत्पत्ति कर्ता हो महे!
नमस्कार मन्त्र
____________________________________
ओम् नमः शम्भवाय -------------------------------च मयोभवाय च नमः शङ्करायच मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च. यजु.
यजुर्वेद १६/ ४१
सौख्य सिन्धु, दीनबंधु को हमारा नमन हो,
अथ देव यज्ञ प्रार्थना-मंत्र.
ओम् विश्वानि देव ------------------------------------सवितर्दुरितानि परा सुव . यद् भद्रंतन्न आसुवआ सुव.
यजुर्वेद ३०/३
जगत के उत्पत्ति कर्ता, तुम नियंता नित्य हो.
स्वस्तिमय शुभ मंगलम, तेरे कृपा सविशेष हो.
ओम् हिरण्यगर्भः ------------------------------------समवर्तताग्रे भूतस्य जातःपतिरेक आसीत् . स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मैदेवाय हविषा विधेम.
यजुर्वेद १३/४
सृष्टि े भी पूर्व सृष्टा, तेज पुंज विराट है,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की, अति प्रेम से भक्ति करें.
ओम् य आत्मदा बलदा------------------------------यस्य विश्व उपासते प्रशिषंयस्य देवाः . यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद २५/१३
प्राण, बल, जीवन प्रदाता, जिसका शासन श्रेय है,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
ओम् यः ॐ य प्राणतो -------------------------------------निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतोबभूव . य ईशे द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद ३३/३
जगत जड़-जंगम रचयिता, सकल प्राणी वर्ग का,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
ओम् य़े ने द्यौ रुग्रा ----------------------------------ॐ येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृ"धा येन स्वःस्तभितं येन नाकः . यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद ३२/६
भूलोक, द्यु, रवि, चन्द्र, ध्रुव, और अन्तरिक्ष बनाए हैं.
सत सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
ओम् प्रजापते न त्वे---------------------------------हविषा विधेमत्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ताबभूव . यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयोरयीणाम् .
ऋग्वेद /१०/१२१/१०
आप ही स्वामी प्रजाके, दूसरा नहीं अन्य है,
अतुल धन ऐश्वर्य का, स्वामी हमें ईश्वर करें.
ओम् स नो बन्धुर्जनिता ---------------------------धामन्नध्यरयन्तास विधाता धामानि वेदभुवनानि विश्वा . यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीयेधामन्नध्यैरयन्त .
यजुर्वेद ३२/१०
तू हमारा जन्म दाता, मातु- पितु बन्धु सभी.
व्याप्त है ब्रह्माण्ड अखिलं, ब्रह्म की ही महानता.
ओम् अग्ने नय सुपथा -------------------------------उक्तिम राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानिविद्वान् . युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमौक्तिंविधेम.
यजुर्वेद ४०/१६
अथ स्वस्तिवाचनम.
ओम् अग्नि मीडे पुरोहितं ---------------------------------------रत्नधातमम.
ऋग्वेद १/१/१
हम वंदना करते उसी की, विश्व का जो है विभो.
ओम् स नः पितेव ---------------------------------------------नः स्वस्तये.
ऋग्वेद १/१/९
कल्यानमय शुभ दृष्टि की, हम कर रहे अभ्यर्थना.
ओम् स्वस्ति नो मिमीताम ---------------------------------पृथ्वी सुचेतुना.
ऋग्वेद ५/ ५१/११
स्वस्तिमय औषधि रचें, स्वस्तिमय होवे प्रजा.
ओम् विश्वे देवा ---------------------------------------------रु्रा पात्वंहसः.
ऋग्वेद ५/५१/१३
दुष्ट संहारक तू ही, हमको सदा सदबुद्धि दे.
ओम् स्वस्ति मित्र वरुणा -----------------------------------नो अदिते कृधि.
ऋग्वेद ५/५१/१४
ही मार्ग पर तुम ले चलो, सब भांति जो स्वस्तिमयी.
ओम् स्वस्ति पन्था मनुचरेम---------------------------------संगमेमही .
ऋग्वेद ५/५१/१५
शुभ सात्विक वृतियों से पूरित, याज्ञिकों का संग दो.
ओम् य़े देवानां ---------------------------------------------स्वस्तिभिः सदा नः.
ऋग्वेद ७/३५/१५
सुख शांति से रहना सिखा दें, इस जगत जंजाल में.
ओम् येभ्यो माता ------------------------------------------अनुमदा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/३
वे साथ हम सब के रहें और ज्ञान संवर्धन करें.
ओम् नृचक्षसो -----------------------------------------------वसते स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/४
सानिध्य करवा दो प्रभो, हम नमन करतें हैं तुम्हें.
ओम् सम्राजो य़े
---------------------------------------------------अदिति स्वस्तये.
एकमेव प्रभु, अघ से बचा , निष्पाप कर देता हमें.
ओम् येभ्यो होत्रम ---------------------------------------------सुपथा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/६
हम भी सत-पथ के पथिक हों, प्रेरणा और ज्ञान दो.
ओम् य ईशिरे -------------------------------------------------पिपृता स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/ ६३/ ८
उनके सभी शुभ भाव मंगल मय, हमें कल्याण दें.
ओम् भरेषविन्द्रम --------------------------------------------मरुतः स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/९
का हृदय से आदर करें, कल्याण के हित प्राणियों.
ओम् सुत्रामाणं ---------------------------------------------रुहेमा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१०
इस दिव्य सात्विकता से जीवन, पूर्ण हो सम्पूर्ण हो.
ओम् विश्वे यजत्रा ---------------------------------------देवा अवसे स्वस्तये .
ऋग्वेद १०/६३/११
स्वस्ति रिद्धि को बुलाते, आप ही दीक्षा करें.
ओम् अपामीवामय ---------------------------------------यच्छता स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१२
हम लोभ पाप विहीन हों, और शांति व् सुख से रहें.
ओम् अरिष्टः ----------------------------------------------दुरिता स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१३
पूर्वजों की कीर्ति वृद्धि, अथ स्वयं ही कर सकें.
ओम् देवासो अवथ ----------------------------------------रुहेमा स्वस्तये.
ऋग्वेद १०/६३/१४
वन्दना स्तुति करें, व्यापक परम जगदीश की.
ओम् स्वस्ति नः पथ्यासु --------------------------------मरतो दधातन.
ऋग्वेद १०/६३/१५
बहु विधि करें कल्याण और सब विधि हमें परित्राण दें.
ओम् स्वस्ति रिद्धि ------------------------------------भवतु देव गोपा.
ऋग्वेद १०/६२/१६
सुलभ हो पृथ्वी तेरे, आशीष से हमको विभो.
ओम् इषे त्वो-------------------------------------------पशून पाहि.
यजुर्वेद १/१
प्रभु अ्न और बल के लिए आश्रय तुम्हारा मांगते,
आधीन न हों दुर्जनों के, याज्ञिक हों शुभ श्री धनपती.
ओम् आनो भद्रा------------------------------- रक्षितारो दिवे-दिवे.
यजुर्वेद २५/१४
शुभ स्वस्तिमय संकल्प प्रभुवर , आप हमको दीजिये.
नित्य उनके ज्ञान से ही , सबकी वृद्धि हो यथा.
ओम् देवानां भद्रा
-----------------------------------------------प्रतिरन्तु जीवसे.
जन दिव्य वे मम दीर्घ आयु, हेतु भी सम्बद्ध्य हों.
ओम् तमीशानं ----------------------------------------पायुर दब्धः स्वस्तये.
यजुर्वेद २५/११
कल्याण हम सबका करो, सृष्टि विधाता एक तू.
ओम् स्वस्ति न इन्द्रो -------------------------------------नो बृहस्पतिर दधातु.
यजुर्वेद २५/१९
त्रिविध ताप हों शांत जग के, देते जो संताप हैं.
ओम् भद्रं कर्णेभिः -------------------------------------------देवहितं यदायुह.
यजुर्वेद २५/२१
मम आयु देवों के काम आये हम नमन करते रहें.
ओम् अग्न आयाहि ------------------------------------------सत्सि वहिर्षी. ओम् सामवेद ओम् १/१
हे ईश ! सुख दाता तू ही, ब्रह्माण्ड विश्व में व्याप्त है,
ऐश्वर्य शांति ज्ञान दाता , की कृपा पर्याप्त है.
वास हृदयों में करो, प्रभु आप ही तो नित्य हैं.
ओम् त्वमग्ने--------------------------------------देवेभिर्मानुशेजनो.
सामवेद १/२
प्रभु श्रेय कर्मों के प्रणेता और प्रेरक आप हैं,
दिव्य गुण बन आ बसो, उनके हृदय स्थान में.
ओम् य़े त्रिशप्ता--------------------------------------अघ दधातु मे.
अथर्ववेद १/१/१
हे! वेद उपदेष्टा, प्रभु परब्रह्म हे परमात्मा!
अथ शांति प्रकरणं
ओम् शनं इन्द्राग्नी -------------------------------------------वाजसातौ.
ऋग्वेद ७ /३५/१
तेरी कृपा से तत्व सब, श्री, शांति की दें सम्पदा.
ओम् शन्नो भघः-----------------------------------------------पुरुजातो अस्तु.
ऋग्वेद ७ /३५ /२
अणु-कण जगत का शुभ्र हो, यदि आपके आशीष हों.
ओम् शन्नो धाता ----------------------------------------------सुखानि सन्तु.
ऋग्वेद ७/३५/३/
शुभ्र स्तुति ज्ञानियों की, शांति कारक हो हमें.
ओम् शन्नो अग्निर्ज्योतिर्नीको -----------------------------------अभिवातु वातः.
ऋग्वेद ७/३५/४
प्राण और अपान व् गमन शीला, वायु सुख दें, प्रार्थना.
ओम् शन्नो द्यावा पृथ्वी -------------------------------------------------जिष्णुः
ऋग्वेद ७/३५/५
भावना और स्नेह स्वामी, हार्दिक सुख शांति दें.
ओम् शंनम इन्द्रो ---------------------------------------------------श्रुनोतु.
ऋग्वेद ७/३५/६
शुभ वाणी से हमको विवेचक ज्ञान दें, जो अनूप हो.
ओम् शं न सोमो ----------------------------------------------------शम्वस्ु वेदिः
ऋग्वेद
७/३५/७/, यजुर्वेद १५/१२
शुभ कार्य, साधन भूत जड़, वस्तु सहायक हों सभी.
ओम् शं न सूर्य उरु
चक्षा----------------------------------------------------संत्वापः.
सुख शांति व् समृद्धि के हों, सिद्ध य़े आकर सभी.
ओम् शन्नो अदितिर भवतु
---------------------------------------------शम्वस्तु वायुः.
'मृदुल' भाषी, शान्तिप्रद, और ज्ञान की शुभ ज्योति हों.
ओम् शन्नो देवः ------------------------------------------------------पतिरस्तु
शम्भु.
जगत स्वामी ब्रह्म हो, सुख लाभ प्रद सबके लिए.
ओम् शन्नो देवा ------------------------------------------------------विश्व
देवा शंयो अप्याः.
यदि आपकी प्रभु हो कृपा, और आप मम धारक बनें.
ओम् शन्नो अज-----------------------------------------------------------------
देव गोपा.
नौका जलों की पार कर दें और कहीं हम ना रुकें.
ओम् इन्द्रो विश्वस्य
---------------------------------------------------------चतुष्पदे.
ओम् शन्नो वातः ----------------------------------------------------------अभिवर्षतु
यजुर्वेद ३६/१०
प्रभु आपकी यदि हो कृपा तो , यह सभी हर्षित करें.
ओम् अहानि शं भवतु
-------------------------------------------------सुविताय शंयोः.
दिन रात सब अपनी कृपा से, हे प्रभो सुखमय करा.
ओम् शन्नो देवी --------------------------------------------------------------वन्तु
नः.
इष्ट सुख की पूर्ण तृप्ति, दया वृष्टि कीजिये.
ओम् द्यौ शांति -----------------------------------------------------------शांति
रेधि.
शुचि शांतिमय परिवेश हों, शांति का साम्राज्य हो.
ओम् तच्च्क्षुरदेवहितं
---------------------------------------------------शरदः शतात.
सौ वर्ष या इससे अधिक हे नाथ ! हम जीवित रहें.
ओम् यज्जाग्रतौ -------------------------------------------------------शिव
संकल्प मस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
ओम् येन कर्मान्यपसों
-----------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
ओम् यतप्रज्ञानमुत
------------------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते!, शिव सत्य संकल्पित रहे.
ओम् येनेदं भूतं
---------------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु
वह मन हमारा सत्पते, शिव सत्य संकल्पित रहे.
ओम् यस्मिन्न -----------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
ओम् सुषारथिर ----------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
ओम् स नः पवस्व ------------------------------------------------राजन्नोषधीभ्या.
सामवेद उत्तरार्चिक १/३
सुख शांति ही सर्वत्र कर दो. दिव्य शांतिमय प्रभो.
ओम् अभयं नः ---------------------------------------------------नो अस्तु.
अथर्ववेद १९/१५/५/
दो शक्ति कि सर्वत्र ही, हम सब अभय हों प्रवीण हों.
ओम् अभयं मित्रा दभयम--------------------------------------------मम
मित्रं भवन्तु.
_______________________-
आचमन मन्त्र
ओइम अमृतो ---------------------------------------------------श्रयातं स्वाहा.
तैत्तरीय
आरण्यक १०/३२/३५
अंग स्पर्श
ओइम वांग्म----------------------------------------------------मे सह सन्तु.
पारस्कर
गृह्य १/३/२५
सब अंग रोग विहीन प्रभु, जीवन को सात्विक अर्थ दो.
ओइम भूर्भुवः स्वः .-------------------------------------
गोमिल
गृह्य सूत्र १/१/११
ओम् ही प्राणस्वरूपी, सुखस्वरूपी ब्रह्म हैं.दुःख विनाशक , सृष्टि धारक , ओम् ही परब्रह्म है.
अग्न्याधानाम
ओइम भूर्भुवः स्वः -------------------------------------द्यायादधे.
यजुर्वेद ३/५
अन्नादि, श्री, ऐश्वर्य, हित पृथ्वी, धरातल पर तेरे.
अग्नि प्रदीपन
ओइम उद्बुद्ध्य ------------------------------------------सीदत.
यजुर्वेद १५/५४.
हे! अग्नि , तुम हो प्रज्ज्वलित, यजमान याज्ञिक के लिए,
समिधाधान मन्त्र
ओइम अयंत इध्म आत्मा-------------------------------इदं न मम .
आश्र्व्लायन गुह्य १/१० १२
यह आत्मा है देव अग्ने! अगनि को समिधा यथा.
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
ओइम समिधाग्निम -----------------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद ३/१
अतिथि के सत्कार की ज्यों , प्रेम श्रद्धा की प्रथा,
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
ओइम सुसमिद्धाय-------------------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद ३/२
ज्वाजल्यान प्रदीप्त अग्नि में, तप्त घी की आहुति,
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
ओइम तंत्वा समिदिभर ---------------------------गिरसे इदं न मम.
यजुर्वेद ३/३
समिधा व् घृत और आहुति से, अग्नि और प्रदीप्त हो,
घृताहुति मंत्रः
ओइम अयंत इध्म आत्मा -----------------------------इदं न मम.
आश्र्व्लायन गुह्य
१/१०/१२
जल प्रसेचन मन्त्र ( जल प्रोक्षणं )
ओइम अदिते -----------------पूर्व दिशा में जल का सिंचन.ओइम अनुमते ---------------- पश्चिम दिशा.ओइम सरस्वत्य--------------- उत्तर दिशा में और
गोभिल गृ. प्र. १. ख.३. सूक्त १/३.
ओइम देव सवितः -------------नः स्वदतु.
इस मन्त्र से चारों दिशा में जल डालें.
सृष्टि रचयिता , आत्म भू, ज्ञानस्वरूपी अनुमते.
आघारावाज्यभागाहुती
ओइम अग्नये स्वाहा. इदं अग्नय इदं न मम.ओइम सोमाय स्वाहा. इदं सोमाय इदं न मम .
गोभिल गुह्य सूत्र १/८/५.
हे! न्याय कारी अग्रणी, शांतस्वरूपी, अति मही.
आज्यभागाहुति
ओइम प्रजापते स्वाहा. इदं प्रजापतये इदं न मम.ओइम इन्द्राय स्वाहा. इदं इन्द्रयाय इदं न मम.
यजुर्वेद २२/ ६/ २७
सर्वस्व अर्पित ब्रह्म को, जो है प्रजा पालक मही.
प्रातः काल की आहुतियाँ
ओइम सूर्यो ज्योति ज्योतिर सूर्याः स्वाहा.ओइम सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा .ओइम ज्योति सूर्यः सूर्य ज्योतिः स्वाहा .
यजुर्वेद ३/९
सूर्य ज्योतिर्मय महिम है, ज्योति का रवि स्रोत्र है.
सूर्य कांतिमय महिम मही, ब्रह्म की रवि ज्योत है.
ओइम सजूर्देवेन सवित्रा सजूरुष सेंद्रवात्या. जुशान सूर्यो वेतु स्वः.
यजुर्वेद ३/१०
सायंकाल आहुति के मन्त्र
ओइम अग्नि ज्योतिर ज्योतिराग्निः स्वाहा .१ओइम अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा .२ओइम अग्नि ज्योतिर ज्योतिराग्निः स्वाहा .३
जुर्वेद ३/९
ज्योति ज्योतिर्मय रवि की, जगत को ज्योतित करे.
रवि कान्ति से ऊषा सुशोभित, जगत को शोभित करे.
ओइम सजूर्देवेन सवित्रा ------------------------------------अग्निर्वेतु स्वाहा
यजुर्वेद ३/१०
प्रातः और सायः दोनों काल के मन्त्र.
ओइम भूरग्नये -------------------------------------नेभ्यः इदं न मम.
तैत्तरीय आरण्यक १०/२
प्राण व् ज्ञानस्वरूपी, प्राण प्रिय तू ही मही.
यह आहुति उस पूर्ण प्रभु को मेरा कुछ किंचित नहीं.
ओइम आपो ज्योति --------------------------------स्वरो स्वाहा
तैत्तरीय आरण्यक १०/१५
सर्व रक्षक सुख प्रदाता , अति महिम सर्वेश हे!.
अमर शुचि आनंद दाता, परम प्रभु परमेश हे!
ओइम यां मेधा -------------------------------------कुरु स्वाहा.
यजुर्वेद ३२/१४.
आत्मदर्शी और विवेकी बुद्धि का, ज्ञानरूपी हे प्रभु! वरदान दे.
बुद्धि मेधावी की करता प्रार्थना, सत बुद्धि मेधा का हमें भी दान दे.
ओइम विश्वानि देव -------------------------------------तन्नासुव.
अनुवाद पीछे है.poo
ओइम अग्ने नय सुपथा ------------------------------उक्तिम विधेम.
अनुवाद पीछे है.
आनंदरूपी, सुख स्वरूपी, ब्रह्म को मम नमन हो.
शुभ स्वस्ति मंगल मोक्ष दाता को, पुनि-पुनि नमन हो.
यजुर्वेद १६/४
ओइम सर्व वै पूर्ण स्वाहा.------------------पूर्णाहुति.
तुलना शत पथ ५/२/२/१
हे! सर्व शक्तिमन विभो! सृष्टा तेरा साम्राज्य है.
तेरा रचित अणु-कण प्रभो! परिपूर्ण है, अविभाज्य है.
पूर्णाहुति मन्त्र
ओइम पूर्णमदः , पूर्ण मिदं , पूर्णात पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्ण मादाय , पूर्ण मेवा वशिष्यते.
उस पूर्णता से पूर्ण घट कर, पूर्णता ही शेष है.
परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है.
ओइम ओइम ओइम
सामान्य प्रकरणं
व्यह्रुत्याहुतिः
ओइम भूरग्नये स्वाहा
----------------------------------------------------इदमादित्याय
पितेदीतेभ्यः इदं न मम.
प्रातः और सायं के मन्त्रों में पीछे देखें.
स्वष्टिकृदाहुति मंत्रः
ओइम यदस्य कर्मणो
----------------------------------------------------स्वष्टिकृते इदं न
मम .
प्राजापत्यहुति मंत्रः
ओइम प्रजापतये स्वाहा. इदं प्रजापतये. इदं न मम.
यह आहुति परब्रह्म के हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
इससे मौन होकर एक आहुति दें.
आज्याहुति मंत्रः
ओइम भूर्भुवः स्वः.-------------------------------------------इदं न मम.
ऋग्वेद ९ / ६६/ १९.
दुर्भाग्य, दुःख, आपत्तियों से हो सदा वंचित मही,
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता को , मेरी किंचित नहीं.
ओइम भूर्भुवः स्वः. अग्निर्रिशी ----------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद २९/९
ऋग्वेद ९/६६/२०.
प्रार्थना सत ऋत ह्रदय की, याचना इच्छित यही.
यह आहुति उस सर्व दृष्टा को, मेरी किंचित नहीं.
ओइम भूर्भुवः स्वः. अग्ने पवस्व स्वपा --------------------------पवमानाय इदं न मम.
यजुर्वेद ८/३८. ऋग्वेद ९/६६/२२
पुष्टि, पराक्रम, संपदा, दे दो हमें इच्छित यही.
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता, को मेरी किंचित नहीं.
ओइम भूर्भुवः स्वः. प्रजापते
------------------------------------प्रजापतये इदं न मम.
अष्टाज्याहुती
ओइम त्वम् नो अग्ने
-------------------------------------------वरुनाभ्याम इदं न मम.
ऋग्वेद ४/१/४
हमें श्रेष्ठतम बल तेज दो,मम कामना समुचित यही
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरा कुछ किंचित नहीं.
ओइम स त्वं नो अग्ने
अवसो------------------------------------------------इदं न मम.
हमको सुगमता से मिलें , प्रभु आप है, इच्छित यही.
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरी कुछ किंचित नहीं.
ओइम इमं मे वरुण---------------------------------------------------इदं
वरुणाय इदं न मम.
शुचि भाव पूरित याचना है, बस प्रभु अर्पित यही.
यह आहुति अति श्रेष्ठ प्रभु को , मेरी कुछ किंचित नहीं.
ओइम तत्वा यामी ब्रह्मणा--------------------------------------------इदं न मम.
ऋग्वेद १/२४/११
सुन प्रार्थना तत्काल, आयु दीर्घ हो इच्छित यही.
यह आहुति सर्वोच्च प्रभु हित , मेरी कुछ किंचित नहीं.
ओइम य़े ते शतं ------------------------------------------------स्वर्केभ्यः
इदं न मम.
यज्ञ की बाधाएं ज्ञानी हर सकें , इच्छित यही.
यह आहुति प्रभु, रित्त्विजों हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.
ओइम अयाश्चागने ----------------------------------------------इदमग्नये
अयसे इदं न मम.
दुःख, रोग, पाप निःशेष हों, कर दो कृपा सिंचित मही.
यह आहुति परब्रह्म प्रभु हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.
ओइम उदुत्तम वरुण ----------------------------------------च इदं न मम.
ऋग्वेद १/२४/१५
बंधन, विकार विहीन मन हो, कर्म न सिंचित कहीं.
यह आहुति हित मोक्ष दाता, मेरी कुछ किंचित नहीं.
ओइम भवतन्तः समनसौ-------------------------------इदं जात वेदोभ्याम इदं न मम.
यजुर्वेद ५/३