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इस पूर्वोक्त मन्त्र से तीन बार आचमन करें.
मनसा परिक्रमा मन्त्र
पूर्व दिशा का ईशानं यह अग्नि देव है,
रक्षक है आदित्य, न तुलना, एकमेव है.
तेरे विधान के न्याय-नियम, सब द्वेष शेष हों.
अथर्ववेद ३/२७/२
दिशि दक्षिण का ईशानं, अनुपम इन्द्र देव है,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
अथर्ववेद ३/२७/३
दिशि पश्चिम के ईशानं, अनुपम वरुण देव हैं,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
अथर्ववेद ३/२७/४
दिशि उत्तर के ईशानं अनुपम सोम देव हैं,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों द्वेष शेष हों.
अथर्ववेद ३/२७/५
दिशि ध्रुव के ईशानं अनुपम य़े विष्णु देव हैं,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
अथर्ववेद ३ /२७/ ६
उपस्थान मंत्र ______________________
यजुर्वेद ३५/१४
अति परे प्रकृति से अन्धकार से दूर अति है,
तेरे प्रकाश की तेज महत, अति अनुपम गति है.
यजुर्वेद ३३/३१
इस विश्व में ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी, ज्ञान विवेक hai
सूर्य रचनाकार की, आनंदकंद निकंद की.
यजुर्वेद ७/४२
विश्वानि देवों में तू ही, अतिशय बली महिमा मयी.
सर्व व्यापक अणु-अणु, द्यौ में धरनि आकाश में.
यजुर्वेद ३६/१४
हे सर्व दृष्टा, सृष्टि के तू , आदि अंत व् मध्य में.
गायत्री मंत्र ________________________
यजुर्वेद, ३६/३, ऋग्वेद, ३/६२/१०
हे सुख स्वरूपी, तुम जगत उत्पत्ति कर्ता हो महे!
नमस्कार मन्त्र
____________________________________
यजुर्वेद १६/ ४१
सौख्य सिन्धु, दीनबंधु को हमारा नमन हो,
अथ देव यज्ञ प्रार्थना-मंत्र.
यजुर्वेद ३०/३
जगत के उत्पत्ति कर्ता, तुम नियंता नित्य हो.
स्वस्तिमय शुभ मंगलम, तेरे कृपा सविशेष हो.
यजुर्वेद १३/४
सृष्टि े भी पूर्व सृष्टा, तेज पुंज विराट है,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की, अति प्रेम से भक्ति करें.
यजुर्वेद २५/१३
प्राण, बल, जीवन प्रदाता, जिसका शासन श्रेय है,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
यजुर्वेद ३३/३
जगत जड़-जंगम रचयिता, सकल प्राणी वर्ग का,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
यजुर्वेद ३२/६
भूलोक, द्यु, रवि, चन्द्र, ध्रुव, और अन्तरिक्ष बनाए हैं.
सत सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
ऋग्वेद /१०/१२१/१०
आप ही स्वामी प्रजाके, दूसरा नहीं अन्य है,
अतुल धन ऐश्वर्य का, स्वामी हमें ईश्वर करें.
यजुर्वेद ३२/१०
तू हमारा जन्म दाता, मातु- पितु बन्धु सभी.
व्याप्त है ब्रह्माण्ड अखिलं, ब्रह्म की ही महानता.
यजुर्वेद ४०/१६
अथ स्वस्तिवाचनम.
ऋग्वेद १/१/१
हम वंदना करते उसी की, विश्व का जो है विभो.
ऋग्वेद १/१/९
कल्यानमय शुभ दृष्टि की, हम कर रहे अभ्यर्थना.
ऋग्वेद ५/ ५१/११
स्वस्तिमय औषधि रचें, स्वस्तिमय होवे प्रजा.
ऋग्वेद ५/५१/१३
दुष्ट संहारक तू ही, हमको सदा सदबुद्धि दे.
ऋग्वेद ५/५१/१४
ही मार्ग पर तुम ले चलो, सब भांति जो स्वस्तिमयी.
ऋग्वेद ५/५१/१५
शुभ सात्विक वृतियों से पूरित, याज्ञिकों का संग दो.
ऋग्वेद ७/३५/१५
सुख शांति से रहना सिखा दें, इस जगत जंजाल में.
ऋग्वेद १०/६३/३
वे साथ हम सब के रहें और ज्ञान संवर्धन करें.
ऋग्वेद १०/६३/४
सानिध्य करवा दो प्रभो, हम नमन करतें हैं तुम्हें.
---------------------------------------------------अदिति स्वस्तये.
एकमेव प्रभु, अघ से बचा , निष्पाप कर देता हमें.
ऋग्वेद १०/६३/६
हम भी सत-पथ के पथिक हों, प्रेरणा और ज्ञान दो.
ऋग्वेद १०/ ६३/ ८
उनके सभी शुभ भाव मंगल मय, हमें कल्याण दें.
ऋग्वेद १०/६३/९
का हृदय से आदर करें, कल्याण के हित प्राणियों.
ऋग्वेद १०/६३/१०
इस दिव्य सात्विकता से जीवन, पूर्ण हो सम्पूर्ण हो.
ऋग्वेद १०/६३/११
स्वस्ति रिद्धि को बुलाते, आप ही दीक्षा करें.
ऋग्वेद १०/६३/१२
हम लोभ पाप विहीन हों, और शांति व् सुख से रहें.
ऋग्वेद १०/६३/१३
पूर्वजों की कीर्ति वृद्धि, अथ स्वयं ही कर सकें.
ऋग्वेद १०/६३/१४
वन्दना स्तुति करें, व्यापक परम जगदीश की.
ऋग्वेद १०/६३/१५
बहु विधि करें कल्याण और सब विधि हमें परित्राण दें.
ऋग्वेद १०/६२/१६
सुलभ हो पृथ्वी तेरे, आशीष से हमको विभो.
यजुर्वेद १/१
प्रभु अ्न और बल के लिए आश्रय तुम्हारा मांगते,
आधीन न हों दुर्जनों के, याज्ञिक हों शुभ श्री धनपती.
यजुर्वेद २५/१४
शुभ स्वस्तिमय संकल्प प्रभुवर , आप हमको दीजिये.
नित्य उनके ज्ञान से ही , सबकी वृद्धि हो यथा.
-----------------------------------------------प्रतिरन्तु जीवसे.
जन दिव्य वे मम दीर्घ आयु, हेतु भी सम्बद्ध्य हों.
यजुर्वेद २५/११
कल्याण हम सबका करो, सृष्टि विधाता एक तू.
यजुर्वेद २५/१९
त्रिविध ताप हों शांत जग के, देते जो संताप हैं.
यजुर्वेद २५/२१
मम आयु देवों के काम आये हम नमन करते रहें.
हे ईश ! सुख दाता तू ही, ब्रह्माण्ड विश्व में व्याप्त है,
ऐश्वर्य शांति ज्ञान दाता , की कृपा पर्याप्त है.
वास हृदयों में करो, प्रभु आप ही तो नित्य हैं.
सामवेद १/२
प्रभु श्रेय कर्मों के प्रणेता और प्रेरक आप हैं,
दिव्य गुण बन आ बसो, उनके हृदय स्थान में.
अथर्ववेद १/१/१
हे! वेद उपदेष्टा, प्रभु परब्रह्म हे परमात्मा!
अथ शांति प्रकरणं
ऋग्वेद ७ /३५/१
तेरी कृपा से तत्व सब, श्री, शांति की दें सम्पदा.
ऋग्वेद ७ /३५ /२
अणु-कण जगत का शुभ्र हो, यदि आपके आशीष हों.
ऋग्वेद ७/३५/३/
शुभ्र स्तुति ज्ञानियों की, शांति कारक हो हमें.
ऋग्वेद ७/३५/४
प्राण और अपान व् गमन शीला, वायु सुख दें, प्रार्थना.
ऋग्वेद ७/३५/५
भावना और स्नेह स्वामी, हार्दिक सुख शांति दें.
ऋग्वेद ७/३५/६
शुभ वाणी से हमको विवेचक ज्ञान दें, जो अनूप हो.
ऋग्वेद
७/३५/७/, यजुर्वेद १५/१२
शुभ कार्य, साधन भूत जड़, वस्तु सहायक हों सभी.
चक्षा----------------------------------------------------संत्वापः.
सुख शांति व् समृद्धि के हों, सिद्ध य़े आकर सभी.
---------------------------------------------शम्वस्तु वायुः.
'मृदुल' भाषी, शान्तिप्रद, और ज्ञान की शुभ ज्योति हों.
शम्भु.
जगत स्वामी ब्रह्म हो, सुख लाभ प्रद सबके लिए.
देवा शंयो अप्याः.
यदि आपकी प्रभु हो कृपा, और आप मम धारक बनें.
देव गोपा.
नौका जलों की पार कर दें और कहीं हम ना रुकें.
---------------------------------------------------------चतुष्पदे.
यजुर्वेद ३६/१०
प्रभु आपकी यदि हो कृपा तो , यह सभी हर्षित करें.
-------------------------------------------------सुविताय शंयोः.
दिन रात सब अपनी कृपा से, हे प्रभो सुखमय करा.
नः.
इष्ट सुख की पूर्ण तृप्ति, दया वृष्टि कीजिये.
रेधि.
शुचि शांतिमय परिवेश हों, शांति का साम्राज्य हो.
---------------------------------------------------शरदः शतात.
सौ वर्ष या इससे अधिक हे नाथ ! हम जीवित रहें.
संकल्प मस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
-----------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
------------------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते!, शिव सत्य संकल्पित रहे.
---------------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु
वह मन हमारा सत्पते, शिव सत्य संकल्पित रहे.
संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
संकल्पमस्तु.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
सामवेद उत्तरार्चिक १/३
सुख शांति ही सर्वत्र कर दो. दिव्य शांतिमय प्रभो.
अथर्ववेद १९/१५/५/
दो शक्ति कि सर्वत्र ही, हम सब अभय हों प्रवीण हों.
मित्रं भवन्तु.
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आचमन मन्त्र
तैत्तरीय
आरण्यक १०/३२/३५
अंग स्पर्श
पारस्कर
गृह्य १/३/२५
सब अंग रोग विहीन प्रभु, जीवन को सात्विक अर्थ दो.
गोमिल
गृह्य सूत्र १/१/११
अग्न्याधानाम
यजुर्वेद ३/५
अन्नादि, श्री, ऐश्वर्य, हित पृथ्वी, धरातल पर तेरे.
अग्नि प्रदीपन
यजुर्वेद १५/५४.
हे! अग्नि , तुम हो प्रज्ज्वलित, यजमान याज्ञिक के लिए,
समिधाधान मन्त्र
आश्र्व्लायन गुह्य १/१० १२
यह आत्मा है देव अग्ने! अगनि को समिधा यथा.
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
यजुर्वेद ३/१
अतिथि के सत्कार की ज्यों , प्रेम श्रद्धा की प्रथा,
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
यजुर्वेद ३/२
ज्वाजल्यान प्रदीप्त अग्नि में, तप्त घी की आहुति,
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
यजुर्वेद ३/३
समिधा व् घृत और आहुति से, अग्नि और प्रदीप्त हो,
घृताहुति मंत्रः
आश्र्व्लायन गुह्य
१/१०/१२
जल प्रसेचन मन्त्र ( जल प्रोक्षणं )
गोभिल गृ. प्र. १. ख.३. सूक्त १/३.
इस मन्त्र से चारों दिशा में जल डालें.
सृष्टि रचयिता , आत्म भू, ज्ञानस्वरूपी अनुमते.
आघारावाज्यभागाहुती
गोभिल गुह्य सूत्र १/८/५.
हे! न्याय कारी अग्रणी, शांतस्वरूपी, अति मही.
आज्यभागाहुति
यजुर्वेद २२/ ६/ २७
सर्वस्व अर्पित ब्रह्म को, जो है प्रजा पालक मही.
प्रातः काल की आहुतियाँ
यजुर्वेद ३/९
सूर्य ज्योतिर्मय महिम है, ज्योति का रवि स्रोत्र है.
सूर्य कांतिमय महिम मही, ब्रह्म की रवि ज्योत है.
यजुर्वेद ३/१०
सायंकाल आहुति के मन्त्र
जुर्वेद ३/९
ज्योति ज्योतिर्मय रवि की, जगत को ज्योतित करे.
रवि कान्ति से ऊषा सुशोभित, जगत को शोभित करे.
यजुर्वेद ३/१०
प्रातः और सायः दोनों काल के मन्त्र.
तैत्तरीय आरण्यक १०/२
प्राण व् ज्ञानस्वरूपी, प्राण प्रिय तू ही मही.
यह आहुति उस पूर्ण प्रभु को मेरा कुछ किंचित नहीं.
तैत्तरीय आरण्यक १०/१५
सर्व रक्षक सुख प्रदाता , अति महिम सर्वेश हे!.
अमर शुचि आनंद दाता, परम प्रभु परमेश हे!
यजुर्वेद ३२/१४.
आत्मदर्शी और विवेकी बुद्धि का, ज्ञानरूपी हे प्रभु! वरदान दे.
बुद्धि मेधावी की करता प्रार्थना, सत बुद्धि मेधा का हमें भी दान दे.
अनुवाद पीछे है.poo
अनुवाद पीछे है.
आनंदरूपी, सुख स्वरूपी, ब्रह्म को मम नमन हो.
शुभ स्वस्ति मंगल मोक्ष दाता को, पुनि-पुनि नमन हो.
यजुर्वेद १६/४
तुलना शत पथ ५/२/२/१
हे! सर्व शक्तिमन विभो! सृष्टा तेरा साम्राज्य है.
तेरा रचित अणु-कण प्रभो! परिपूर्ण है, अविभाज्य है.
पूर्णाहुति मन्त्र
पूर्णस्य पूर्ण मादाय , पूर्ण मेवा वशिष्यते.
उस पूर्णता से पूर्ण घट कर, पूर्णता ही शेष है.
परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है.
सामान्य प्रकरणं
व्यह्रुत्याहुतिः
----------------------------------------------------इदमादित्याय
पितेदीतेभ्यः इदं न मम.
प्रातः और सायं के मन्त्रों में पीछे देखें.
स्वष्टिकृदाहुति मंत्रः
----------------------------------------------------स्वष्टिकृते इदं न
मम .
प्राजापत्यहुति मंत्रः
यह आहुति परब्रह्म के हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
इससे मौन होकर एक आहुति दें.
आज्याहुति मंत्रः
ऋग्वेद ९ / ६६/ १९.
दुर्भाग्य, दुःख, आपत्तियों से हो सदा वंचित मही,
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता को , मेरी किंचित नहीं.
यजुर्वेद २९/९
ऋग्वेद ९/६६/२०.
प्रार्थना सत ऋत ह्रदय की, याचना इच्छित यही.
यह आहुति उस सर्व दृष्टा को, मेरी किंचित नहीं.
यजुर्वेद ८/३८. ऋग्वेद ९/६६/२२
पुष्टि, पराक्रम, संपदा, दे दो हमें इच्छित यही.
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता, को मेरी किंचित नहीं.
------------------------------------प्रजापतये इदं न मम.
अष्टाज्याहुती
-------------------------------------------वरुनाभ्याम इदं न मम.
ऋग्वेद ४/१/४
हमें श्रेष्ठतम बल तेज दो,मम कामना समुचित यही
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरा कुछ किंचित नहीं.
अवसो------------------------------------------------इदं न मम.
हमको सुगमता से मिलें , प्रभु आप है, इच्छित यही.
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरी कुछ किंचित नहीं.
वरुणाय इदं न मम.
शुचि भाव पूरित याचना है, बस प्रभु अर्पित यही.
यह आहुति अति श्रेष्ठ प्रभु को , मेरी कुछ किंचित नहीं.
ऋग्वेद १/२४/११
सुन प्रार्थना तत्काल, आयु दीर्घ हो इच्छित यही.
यह आहुति सर्वोच्च प्रभु हित , मेरी कुछ किंचित नहीं.
इदं न मम.
यज्ञ की बाधाएं ज्ञानी हर सकें , इच्छित यही.
यह आहुति प्रभु, रित्त्विजों हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.
अयसे इदं न मम.
दुःख, रोग, पाप निःशेष हों, कर दो कृपा सिंचित मही.
यह आहुति परब्रह्म प्रभु हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.
ऋग्वेद १/२४/१५
बंधन, विकार विहीन मन हो, कर्म न सिंचित कहीं.
यह आहुति हित मोक्ष दाता, मेरी कुछ किंचित नहीं.
यजुर्वेद ५/३