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पुलिन / लीलाधर मंडलोई

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सूर्य थका-ऊबा डूब रहा है
पंछी थके-ऊबे लौट रहे हैं
पेड़ थके-ऊबे निंदिया रहे हैं
कितने घावों का दर्द, कितनी बेचैनी
हो रही है रात गहरी और सब कुछ ऊब रहा है
कहां है कैद तुम्‍हारी नींद कि चुरा लाऊं तुम्‍हारे लिए आज!

पुलिन तुम कभी सोते क्‍यों नहीं?
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