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जुलूस
सड़क पर कतारबद्ध
छोटे -छोटे हाथ
हाथों में छोटे-छोटे तिरंगे
लड्डू बर्फ़ी के लिफ़ाफ़े
साल में एक बार आता वह दिन
कब लड्डू बर्फ़ी की मिठास खो बैठा
और बन गया
दादी के अंधविश्वासों सा मज़ाक
जुलूस<br>भटका हुआ रिपोर्टरसड़क पर कतारबद्ध<br> छाप देता हैछोटे -छोटे हाथ<br>सिकुड़े चमड़े वाले चेहरेहाथों में छोटे-छोटे तिरंगे<br>जिनके लिए हर दिन एक जैसालड्डू बर्फ़ी उन्हीं के लिफ़ाफ़े<br><br>बीच मिलता महानायकों को सम्मानएक छोटे गाँव में अदना शिक्षक लोगों से चुपचाप पहनता मालाएँ
साल में एक बार आता वह दिन<br>कब लड्डू बर्फ़ी की मिठास खो बैठा<br>और बन गया <br>दादी के अंधविश्वासों सा मज़ाक<br><br> भटका हुआ रिपोर्टर<br>छाप देता है<br>सिकुड़े चमड़े वाले चेहरे<br>जिनके लिए हर दिन एक जैसा<br>उन्हीं के बीच मिलता <br>महानायकों को सम्मान<br>एक छोटे गाँव में <br>अदना शिक्षक लोगों से चुपचाप<br> पहनता मालाएँ<br><br> गुस्से के कौवे<br>बीट करते पाइप पर<br>बंधा झंडा आसमान में<br>तड़पता कटी पतंग-सा<br>एक दिन को औरों से अलग करने को।<br>को ।<br/poem>
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