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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
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हम तो गाकर मुक्त हुए
तेरी थाती जन-जन तक पहुंचाकर मुक्त हुए
 
कुछ भी किया न हो जीवन में  
लेकर एक विकलता मन में
देखे जो सपने क्षण-क्षण में
दोनों हाथों से वे आज लुटाकर मुक्त हुए
 
जिसको मन का मीत बनाया
पर न मिलन जिससे हो पाया
वही शेष पल में ज्यों आया
शब्द-शब्द से उसको गले लगाकर मुक्त हुए
 
अणु-अणु में जो व्याप्त अगोचर
रवि-शशि में, तारों में भास्वर
शाश्वत, पूर्ण, सत्य, शिव सुन्दर
उसकी छाया अपने स्वर में पाकर मुक्त हुए

हम तो गाकर मुक्त हुए
तेरी थाती जन-जन तक पहुंचाकर मुक्त हुए
<poem>
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