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|संग्रह=हम तो गाकर मुक्त हुए / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:कवितागीत]]
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कोयल पंचम सुर में बोली मधुर सुरों ने ज्यों अंतर की कुहक का यहीं अंत है माना, पुन: लौटता वसंत है तरु से पत्र आज झड़ गया आयेगा रूप लिए फिर नयाजीवन अमर है यही जानकरआती न हो वायु को तनिक दयारोता ही रहा परन्तु वृंत है  सिन्धु-तीर लहरों का ताँता है मन का जुड़ गया कहीं नाता हैसलिल वही लौटता हो बार-बार ज्वार वही लौट नहीं पाता हैक्या हो जो सृष्टि-क्रम अनंत है  दुखती गाँठ टटोली
कोयल शांत प्रकृति के उर में फिर से लहर प्यार की कुहक का यहीं अंत डोलीराग-बिरंगे फूल आ गये बना-बनाकर टोली  जो रहस्य की बात आज तक नहीं गयी  थी खोली फैल गयी है वह घर-घर में बनकर एक ठिठोलीमानातेरा वह छिपकर आना, पुन: लौटता वसंत मुख पर मल देना रोली जाने कैसे पल भर में ही थी अनहोनी हो ली  नाच रही हैस्मृति में कोई चितवन भोली-भोली फिर गुलाब की पंखुड़ियों से भर ली मैंने झोली कोयल पंचम सुर में बोली
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