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आपत्ति / लीलाधर मंडलोई

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मुझे क्या आपत्ति, अगर आप निकाले रेगिस्तान से तेल
मुझे क्या आपत्ति, अगर आप पैदा करें समुद्र से नमक
मुझे क्या आपत्ति, अगर चरैं ऊँट हरी-हरी पत्तियाँ
मुझे क्या आपत्ति, अगर सबको मिले शुद्ध आक्सीजन
मुझे क्या आपत्ति, अगर रहे सलामत यह धरती

मेरी उम्र सात ही बरस सही
दिमाग न हो दिग्गजों जैसा, मगर हक है मेरा कहना
अगर रेगिस्तान में बहे लहू का दरिया
अगर समुद्र में मरे अनगिनत जल-जीव
अगर जल उठें पेड़, पौधे, पत्तियाँ
अगर हवा में घुले जहर ओर-छोर
और कोई अगर चाहे करना इस धरती को नेस्तनाबूद

मुझे आपत्ति है, सख्त आपत्ति
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