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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई …
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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
सोचा कहाँ होगा तुमने कि अधखिला सच
दबाए काँख में उड़ जाएगा एक बाज राजधानी की सिम्त
अब चमक-चौदस की भीड़ में डूबा
चमकता चाँदी का जूता है दिखता सिक्के सा
दाखिल होओ तो अपने निविड़ सुनसान में
संशय और अपयश में चिढ़ाएगा रह-रहकर अपना ही अक्स
दिखने को अपनी यातना में अडिग
गुनगुना सकते हो तो बेशक गुनगुनाओं अधखिला सच
खुदा करे आमद हो तुम्हारे यश की
तुम्हारा एकांत रोशन हो अधखिले झूठ में।
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|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
सोचा कहाँ होगा तुमने कि अधखिला सच
दबाए काँख में उड़ जाएगा एक बाज राजधानी की सिम्त
अब चमक-चौदस की भीड़ में डूबा
चमकता चाँदी का जूता है दिखता सिक्के सा
दाखिल होओ तो अपने निविड़ सुनसान में
संशय और अपयश में चिढ़ाएगा रह-रहकर अपना ही अक्स
दिखने को अपनी यातना में अडिग
गुनगुना सकते हो तो बेशक गुनगुनाओं अधखिला सच
खुदा करे आमद हो तुम्हारे यश की
तुम्हारा एकांत रोशन हो अधखिले झूठ में।