भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
कितना अजीब है यह कार्ड कि बोलता नहीं-‘सब खैरियत है’
न केवल पेड़-पौधे
न केवल अरब सागर
गायब है धरती, अंतरिक्ष गायब
भाग रहे हैं तमाम पखेरू नये ठिकानों की फिक्र में
कोई ऐसी जगह नहीं
कि चिलकती हो माकूल जगह
सिर्फ गर्द है, धुआँ है, आग है और
और असंख्य छायाएँ छोड़तीं ठिकाने
वर्दियों से अटा कितना अजीब है यह कार्ड
कि बोलता नहीं-‘सब खैरियत है’
778
edits