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पगली-सी देती फेरी?<br />
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क्यों व्यथित व्योमगंगाव्योम गंगा-सी<br />
छिटका कर दोनों छोरें<br />
चेतना तरंगिनी मेरी<br />
करती हैं काम अनिल का।<br />
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प्यासी मछली-सी आँखें<br />
थी विकल रूप के जल में।<br />
दिखलाई देती लूटी।<br />
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छिल -छिल कर छाले फोड़े<br />मल -मल कर मृदुल चरण से<br />धुल -धुल कर बह रह जाते <br />
आँसू करुणा के कण से।<br />
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झंझा झकोर गर्जन था<br />
बिजली थीस थी सी नीरदमाला,<br />
पाकर इस शून्य हृदय को<br />
सबने आ डेरा डाला।<br />
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