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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} <poem> चेहरे पर ये झुर्रियां कब आ ग…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
}}
<poem>
चेहरे पर ये झुर्रियां कब आ गई,
देखते ही देखते बचपन खा गई.
वक्त बेवक्त हम निहारते हैं आईना,
सूरत पर कैसी ये मुर्दनी छा गई.
तकाज़ा वक्त का या ख़फ़ा है आईना.
सच की आदत इसकी अब भी ना गई.
है कहाँ हकीम करें इलाज इनका,
पर ढूँढ़ें किस जहाँ क्या जमीं खा गई.
बरसती खुशियाँ सुहाती बौछार,
मुझको तो "दीद" मेरी कलम भा गई.
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा
}}
<poem>
चेहरे पर ये झुर्रियां कब आ गई,
देखते ही देखते बचपन खा गई.
वक्त बेवक्त हम निहारते हैं आईना,
सूरत पर कैसी ये मुर्दनी छा गई.
तकाज़ा वक्त का या ख़फ़ा है आईना.
सच की आदत इसकी अब भी ना गई.
है कहाँ हकीम करें इलाज इनका,
पर ढूँढ़ें किस जहाँ क्या जमीं खा गई.
बरसती खुशियाँ सुहाती बौछार,
मुझको तो "दीद" मेरी कलम भा गई.
</poem>